Wednesday, March 14, 2018

अतिशय क्षेत्र गोलाकोट (मध्‍य प्रदेश)

सैर कर दुनिया की ग़ाफिल जिन्‍दगानी फिर कहां ........बुन्‍देलखण्‍ड और आस-पास के स्‍थलों को धूमने का सिलसिला कई वर्षो से लगातार जारी है, और आज फिर रविवार है और रविवार मेरे लिये हमेशा की तरह कुछ खास ही होता है। क्‍योंकि छुट्टिया मौका देती है प्रकृति के करीब जाने का। कुछ सीखने का, इतिहास के कुछ नये पन्‍ने पलटने का। इसी क्रम में आज मेरा जाना जनपद शिवपुरी के ही एक और प्रसिद्ध स्‍थल ''गोलाकोट'' पर हुआ, वैसे तो शिवपुरी अंचल पुरातात्विक, धार्मिक धरोहरों से भरा पड़ा है, यहां विन्ध्य पर्वतमाला पर प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थित 3000 वर्ष प्राचीन चतुर्थकालीन मंदिर में मुलनायक आदिनाथ की प्रतिमा सहित अनेक दिव्य,भव्य प्रतिमाये विराजमान है, यहाँ अतिशय युक्त बाबड़ी भी मौजूद है। ललितपुर से चंदेरी फिर खनियाधाना से बामौरकलां-गुडर होते हुये लगभग 65 किमी0 की यात्रा करके यहां पहुंचा जा सकता है। यहां के बारे में बताया गया है कि यहां पर दिगम्बर जैन परिवार समाज के लगभग 700 परिवार देदामूरी गौत्र के निवास करते थे और इन परिवारों द्वारा ही यहां भगवान आदिनाथ का अभिषेक भी किया जाता है। प्राकृतिक रूप से एवं स्थानीय समाजों के प्रयासों से यहां लगभग 900 कुंआं और 89 बाबड़ी मौजूद है। यह मंदिर एक ऐतिहासिक धार्मिक मंदिर है इसी कारण प्रतिवर्ष यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु दर्शन को आते है। यहां पर साधु-संतो के विश्राम के लिये बेशकीमती लकड़ी से कुटियां बनायी गयी है, जो अभिनव अनूठा प्रयोग है। पास ही एक सरोवर निर्माणाधीन है। वातानुकुलित धर्मशाला व भोजनशाला भी आने जाने धर्मावलम्बियों, पर्यटकों का मनमोह लेगी। इस पहाड़ी के चारों ओर सुन्‍दर पर्वत और हरे-भरे वन मौजूद है, ऊंचाई से चारों ओर का मनोरम द्रश्‍य आपको लम्‍बे समय तक याद रहेगा। मुख्‍य गेट से लगभग 250 से अधिक सीढि़याें को चढ़कर अथवा पहाड़ी को काटकर तैयार हो रहे नवीन सड़क से आप मुख्‍य पहाड़ी तक पहुंच सकते है। पहाड़ी के नीचे एक सुन्‍दर सा सरोवर भी आपको पहाड़ी क्षेत्रों जैसा आभास देगा। चंदेरी के समीप धार्मिक आस्‍था का यह केन्‍द्र इस क्षेत्र में पर्यटकों के आवागमन को अप्रत्‍याक्षित रूप से बढ़ा सकता है। ललितपुर से चंदेरी-शिवपुरी मार्ग नैसर्गिक सुन्‍दरता का धनी है, यहां के सफर का आनन्‍द ही खास है। वापस आते हुए चंदेरी में किला कोठी पर नज़र पड़ी जो रात्रि में किले के चारों ओर लगाई गई लाइट्स इतिहास को जीवंत करती नज़र आ रही थी, किला कोठी पर जब हम रात्रि में पहुँचे तो ऊंचाई पर तारों से सजा आसमान ओर नीचे जुगनुओं की मानिंद रोशन चंदेरी, ओर झरोखों से आ रही मदहोश करने वाली ठंडी हवा ने इस यात्रा में नया अध्याय जोड़ दिया। यहां कुछ देर रुकना आप भुला नहीं पाएंगे । आप भी मेरे साथ यूंही सैर-सपाटा करते रहिये.. इन्‍शाअल्‍लाह फिर मुलाकात होगी एक नये यात्रा वृतान्‍त के साथ ............ 



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